राजस्थान मेगा ट्रेड फ़ेयर में हो गया लंबा खेल! जिमेदार मौन, निगम ने मेला सील कर निभाई औपचारिकता, केविएट नहीं लगाकर निभाया साथ !

रतलाम। शहर के आंबेडकर ग्राउंड पर राजस्थान मेगा ट्रेड फेयर और रतलाम नगर निगम की आपसी सांठगांठ अब खुलकर जगजाहिर हो चुकी है। आमजन पर टैक्स में बढ़ोत्तरी की मार और मेला संचालक पर मेहरबानी का ताजा उदाहरण सामने देखने को मिला है। सात दिन पहले नींद से जागकर मेला सील करने वाली निगम ने मेला संचालक को हाईकोर्ट से बड़ी राहत दिलाने में मदद की। निगम ने मदद कुछ ऐसे दिलाई कि मेला तो सील किया लेकिन कोर्ट में केविएट नहीं लगाई। पूरे मामले में नगर निगम की संलिप्तता पर मुहर लग चुकी है कि आखिर कैसे आपसी सांठगांठ कर जिम्मेदारों ने 79 लाख रुपए का भूखंड राजस्व और आमोद-प्रमोद कर से मुंह मोड़कर शासन को नुकसान पहुंचाया है।
बता दें कि राजस्थान मेगा ट्रेड फेयर मेले के लिए संचालक अशोक जैन ने रतलाम नगर निगम से 10 हजार स्क्वेयर फीट जमीन की अनुमति लेकर अवैध तरीके से 1.30 लाख स्क्वेयर फीट भूमि पर कब्जा कर लिया था। अनुमति अनुसार 30 दिन के लिए 6.06 लाख रुपए की राशि जमा कराई गई, जबकि वास्तविक किराया 2 रुपए प्रति स्क्वेयर फीट प्रतिदिन के हिसाब से लगभग 78 लाख रुपए बनता है। इस गड़बड़ी से राज्य शासन को भारी आर्थिक नुकसान हुआ। वंदेमातरम् न्यूज की पड़ताल में यह भी सामने आया कि निगम के कुछ जिम्मेदार अधिकारियों की सांठगांठ से यह घोटाला अंजाम दिया गया। सूत्रों के अनुसार इस पूरे लेन-देन में 20 लाख रुपए तक की ऊपरी वसूली भी की गई थी। वंदेमातरम् न्यूज में खबर प्रकाशन के बाद आंखे मूंदे बैठे जिम्मेदारों ने मेला परिसर की नपती कर संचालक जैन को 79 लाख रुपये का नोटिस दिया। नोटिस के दौरान भी संचालक को 7 दिन की सीमा देकर शुरुआत में बड़ी राहत दी थी। नोटिस के 9 दिन बाद थके हारे अधिकारी ने मौके पर पहुंचकर दोनों प्रवेश द्वारों को सील किया। सूत्रों के अनुसार मेला सील की औपचारिकता के बाद जिम्मेदार नगर निगम के अधिकारियों ने अपना पक्ष न्यायालय में मजबूती से रखने के बजाए केविएट तक लगाना कोर्ट में उचित नहीं समझा। नतीजतन हाईकोर्ट ने मामले में मेला संचालक के आवेदन पर सुनवाई करते हुए सील खोलने के आदेश जारी किए।
इसके पहले 2 मई 2025 को cover story 24 ने खबर प्रकाशित कर सांठगांठ से पर्दा उठाया था, जिसके बाद नगर निगम हरकत में आया था। अवैध कब्जे की नपती के बाद संचालक को नोटिस भेजा गया, लेकिन समयसीमा खत्म होने तक कोई जवाब नहीं दिया गया। मेले को सील करने की कार्रवाई उपायुक्त करुणेश दंडोतिया के नेतृत्व में की गई थी। जिसमें निगम की बड़ी टीम मौजूद रही थी। इसके बाद मेला संचालक के प्रति जिम्मेदारों ने ऐसी उदारता दिखाई कि उसे कोर्ट से बड़ी राहत मिल गई। मुद्दे पर निगम कमिश्नर हिमांशु भट्ट से पक्ष जानना चाहा, लेकिन वह जिम्मेदारी से बचते हुए मोबाइल रिसीव नहीं किया।
क्या होता है केविएट, समझिए कुछ इस तरह
भारत में कानूनी आधार : केविएट से संबंधित प्रावधान सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) 1908 की धारा 148A में दिए गए हैं। कोर्ट में "केविएट" (Caveat) का अर्थ होता है एक पूर्व सूचना या चेतावनी जो कोई व्यक्ति अदालत को देता है कि यदि उस मामले में कोई याचिका दाखिल की जाए तो उसे (केविएट दायर करने वाले को) भी सुना जाए।इससे कोर्ट उस व्यक्ति को बिना सुने कोई आदेश नहीं दे सकता।