रोशनी की उम्मीद में अंधेरे से जूझता रतलाम जिले का खेड़ीकलां गांव , चिमनी की रोशनी में पढ़ने को मजबूर देश का भविष्य, जहां आज भी चिमनी की लो से हो रहा उजाला

रोशनी की उम्मीद में अंधेरे से जूझता रतलाम जिले का खेड़ीकलां गांव , चिमनी की रोशनी में पढ़ने को मजबूर देश का भविष्य, जहां आज भी चिमनी की लो से हो रहा उजाला

रतलाम। समीर खान (चीफ एडिटर) रतलाम जिले से 16 किलोमीटर दूर खेड़िकला गांव आज भी रोशनी की उम्मीद को तरस रहा हैं। करीब 250 लोगों की आबादी वाला यह गांव पूरी तरह अंधेरे में डूबा हुआ है। पूरा क्षेत्र आदिवासी बहुल है और यहां के लोग खेती व धौलावाड़ डेम से मछली पकड़कर अपना जीवन यापन करते हैं। बावजूद इसके, आज तक गांव के घर में बिजली नहीं पहुंच सकी। वहीं देश का भविष्य बच्चे अपनी पढ़ाई चिमनी ओर मोबाइल की रोशनी में करने को मजबूर है। 

गांव में बिजली के खंभे तो है लेकिन उनमें ना तो बिजली के तार हे और नहीं बिजली, ग्रामीण अपने निजी खर्चे से बिजली के तार खरीदकर लाए हैं और करीब 3 हजार फिट दूर से बिजली कनेक्शन करवाया था लेकिन डीपी फाल्ट होने से बिजली बंद हो गई है। करीब 18 दिन से ग्रामीण अंधेरे में रह रहे हैं। लाइनमैन का कहना हैं कि बिजली का बिल भर दो तो लाइट चालू कर देंगे। जिसके बाद ग्रामीणों ने राशि एकत्रित कर बिजली का बिल भर दिया लेकिन आज तक बिजली चालू नहीं हुई ओर ग्रामीण अंधेरे में जीने को मजबूर है। 

गांव के नानूराम कटारा बताते हैं कि उनके पिता की उम्र 75 साल हो चुकी है, लेकिन उनके वार्ड नंबर पांच में आज तक बिजली नहीं आई। "मेरे तीनों बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं, एक बारहवीं, दूसरा दसवीं और तीसरा सातवीं कक्षा में पढ़ता है। लेकिन अंधेरे में पढ़ाई करना पड़ता है। कभी मोबाइल की रोशनी में तो कभी बैटरी खत्म हो जाने पर पढ़ाई रुक जाती है।"


ग्रामीणों ने खुद बिछाई लाइन, फिर भी अंधेरा

ढ़ोलावाड़ मत्स्य समिति अध्यक्ष बसंतीलाल बताते हे कि गांव के किसी भी घर में बिजली का मीटर नहीं है, लेकिन हर महीने बिल जरूर आता है। गांव वालों ने आपस में पैसे जोड़कर करीब तीन हजार मीटर लंबी लाइन खुद बिछाई और डीपी से कनेक्शन भी किया। कुछ समय तक घरों में बिजली जली भी, लेकिन पिछले 18 दिनों से पूरा गांव अंधेरे में डूबा हुआ है। वजह है—बिजली बिल का भुगतान न होना।


नेताओं और जनप्रतिनिधियों के वादे अधूरे

ग्रामीणों ने बताया कि पूर्व  विधायक हर्षविजय गहलोत ने अपनी विधायक निधि से गांव में एक डीपी जरूर लगाने का बोला था, डीपी आई भी थी और खंभे भी खड़े कर दिए गए थे, लेकिन दो साल से खंभों पर तार नहीं डाले गए। ओर बिजली विभाग वाले डीपी वापस ले गए।
जिला पंचायत उपाध्यक्ष केशू निनामा गांव आए और आश्वासन देकर चले गए, मगर फिर कभी लौटकर नहीं आए। ग्रामीणों का कहना है कि "हमारे माता-पिता गुजर गए लेकिन बिजली अब तक नहीं आई।"

मोबाइल और चिमनी की रोशनी से बच्चे कर रहे पढ़ाई 

एक बुजुर्ग ग्रामीण ने बताया कि जब उनके पिता पैदा हुए थे तब भी गांव में बिजली नहीं थी और जब वे खुद पैदा हुए तब भी नहीं हैं बिजली कभी आती हे कभी नहीं। "पहले तो घासलेट मिल जाता था, अब वो भी नहीं मिलता। खंभे लगे तो खुशी हुई थी, सोचा था बिजली आएगी, लेकिन डेढ़-दो साल हो गए तार तक नहीं डाले।"
गांव के एक अन्य युवक हाथ में डीजल की केन लिए नजर आए। पूछने पर बताया—"घर में रोशनी के लिए चिमनी जलाना पड़ता है। पहले हजार रुपए का डीजल लाया था, खत्म हो गया तो आज फिर 200 रुपए का लेना पड़ा।"


अंधेरे में उम्मीद की किरण तलाश रहे ग्रामीण 

गांव वालों का कहना है कि दशकों से वादे होते आ रहे हैं, लेकिन हकीकत में आज तक गांव रोशनी से महरूम है। "हमारे बच्चों की पढ़ाई, जीवन-यापन, खेती सब पर असर पड़ रहा है। आखिर कब तक हम अंधेरे में रहेंगे?"—यही सवाल ग्रामीण बार-बार दोहरा रहे हैं।
यह गांव आज भी प्रशासन और नेताओं की अनदेखी का शिकार है, जहां आजादी के इतने साल बाद भी बिजली पहुंचना एक सपना ही बना हुआ है।