थोड़ा हम भी जी ले"(कविता)
शाहरुख की देवदास में
पारो कहती है चंद्रमुखी से,
आओ ना थोड़ा हम भी जी ले,
लेकिन
कहा जी पा रहे है हम,
आज की फिल्में थोड़ा सुकून ही देती है,
उस पर भी पुराने गीतों को,
नयी शक्ल में ढाल दिया जाता है
पर वो मिठास ओर वो अंदाज नही,
जो रात कली इक ख्वाब में आयी में था,
साँवली सूरत में था,
हाथों में किताब ओर बालो में गुलाब में था,
दो चोटियों से खेलती ,
रेखा की शोखियों में था,
पल पल दिल के पास तुम रहती हो,
प्रेमपत्रों के पीछे भागती,
राखी के शर्मीलेपन में था,
राजकपूर के आवारा भोले अंदाज में था,
रिमझिम जले सावन में मौसमी के दांतों में था,
भीगे भीगे अमिताभ की आँखों की गहराई में था,
होंठ का कोना दबाते जितेंद्र की,
आशिकी में था,
सूनी सड़क के कोने पर इंतजार करती,
लड़की की घबराहट में था,
पी लेती हूँ, खो जाती हूँ,
उस अनोखे प्रेम के सुरूर में,
थोड़ा ख्बाबों में ही जीये,
आओ थोड़ा हम भी जी ले !
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इन्दु सिन्हा"इन्दु"
रतलाम(मध्यप्रदेश)