महिला दिवस विशेष:हर मोर्चे पर झंडे गाडऩे के साथ ही परिवार की जिम्मेदारियां भी बखूबी निभा रही महिलाए

रतलाम। शरीर पर चाहे पूरे कपड़े नहीं हो, पेट भर खाना नहीं हो, लेकिन होठों पर सजी मुस्कान कम नहीं होती कभी। हर हालत में खुश रहना ही इसकी आदत है। चाहे कितने दुख है, लेकिन मेहनत करना इसका गहना है,वो इस गहने के साथ खुश रहती है।
आप सही समझे वो हमारे देश की नारी है।
आप नजर दौडाइये ढेरो रूप मिलेंगे नारी के किसी बनती ईमारत में देख लीजिए सर पर ईंटें, रेत, सीमेंट ढोती नारी को देख लीजिए। कपड़े चाहे फटे हो लेकिन मेहनत करती हुई मिलेगी, मुस्कुराती हुई मिलेगी। सडक़ की सफाई करती हुई सफाईकर्मी को देख लीजिए। ढाबों में, दुकानों में भी काम करती दिखेगी। सरकारी नौकरियों से रिटायर होने के बाद भी नारी कब रिटायर होती है? नौकरी से रिटायर होने के बाद क्या घरेलू कार्य से उसका रिटायरमेंट हुआ तो जवाब मिलेगा नहीं,कभी नहीं। घर में घरेलू कार्यों में पिसती रहती है जैसा कि शुरू से पिसती रही है। कहीं-कहीं तो परिवारों में ये देखने को भी मिलता है कि पूरे हफ्ते भर परिवार के सदस्य अपनी पसंद के व्यंजनों की सूची लिए बैठे रहते है,
माँ आज मेरी पसंद की खीर बना दो,
अरे सुनती हो, आज मेरी पसंद के पनीर के पराठे बना दो,
अपनी पसंद को भूलकर दूसरों की पसंद में जुटी रहती है वो नारी ही होती है।
नारी आज आत्मनिर्भर बन चुकी है। शहर की हो या गांव की ज्यादातर यही देखते हैं हम पुरानी परंपराओं से हटकर और देवी देवता के फ्रेम से बाहर निकल रही है जो पहले ये कहती थी,
भला है बुरा है कैसा भी है मेरा पति मेरा देवता है
इस धारणा इस सोच को उसने तोड़ा है वह देवी नहीं सहयोगिनी है, आत्मनिर्भर नारी से घर परिवार को मदद मिलती है। आर्थिक रूप से भी अनेकों सरकारी नीतियां भी महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही है। उनको व्यक्तिगत पहचान दिलाने में सहायता कर रही है। कहीं-कहीं इसके दुष्परिणाम भी है वो सिक्के के दो पहलू हर जगह होते हैं, दुष्परिणाम ये देखने में आते हैं की पति मक्कारी और कामचोरी पर उतर आते हैं, मजे की बात यह है कि ऐसे पतियों को महिलाएं ढोती रहती है ये बोलती है।
क्या करें सुनते नहीं,काम धंधा छोडकर बैठे है, जहां बच्चे पल रहे हैं वहां बच्चों के साथ बाप भी पल जाएगा।
महिलाएं दोनो मोर्चे पर सफल है, काम और घर में संतुलन बनाते हुए वह तरक्की की नई परिभाषा लिख रही है। सही मायनो में शिक्षा सम्मान का अधिकार जिन महान हस्तियों ने दिलवाया था,राजा राममोहन राय, डॉक्टर अंबेडकर, महात्मा गांधी, ईश्वर चंद्र विद्यासागर उनके बताएं मार्ग में नारी कुशलता से चल रही है। रास्ते कितने भी पथरीले क्यों ना हो, दुनिया के दस्तूर बदलते है बदलने वाले चाहिए।
तुम देवी नही "(कविता)
नारी तुम देवी नहीं हो ,
क्यों बनना चाहती हो देवी?
क्यों टँगे रहना चाहती हो ,
सुनहरी फ्रेम में ,क्यों बनना चाहती हो ?
तुम सुंदर गुड़िया प्लास्टिक की,
बार्बी डॉल जैसी,
किसी शोपीस जैसी ,
तुम खुद एक सृष्टि हो,
ईश्वर की अनमोल कृति हो,
तुम्हारा वजूद इतना कम नहीं,
जिसे हवा में उड़ा दिया जाए,
ना ही जुल्मों की आंधियों से,
तुम्हें मिटा दिया जाए ,
तुम हो जीवन की मजबूत इमारत ,
या फिर,
फल फूलों से लदा कोई वृक्ष,
जिसमें खुशबू है छाया है,
ओर है सुरक्षा का एहसास,
मत भटको कस्तूरी मृग सी,छलावे में,
बंद करो यह भटकन,
जगत करता है ,
सदियों से तुम को नमन नमन
-इन्दु सिन्हा "इन्दु", रतलाम (मध्यप्रदेश)
रचना मौलिक स्वरचित है |