लोकमाता देवी अहिल्या के जन्म वर्ष पर सृजन महाविद्यालय में लगाई प्रदर्शनी, व्याख्यान में उनके जीवन चरित्र का वर्णन किया

लोकमाता देवी अहिल्या के जन्म वर्ष पर सृजन महाविद्यालय में लगाई प्रदर्शनी, व्याख्यान में उनके जीवन चरित्र का वर्णन किया

रतलाम। सृजन महाविद्यालय में लोकमाता अहिल्या देवी का त्रिशताब्दी जन्म वर्ष  पर उनके जीवन दर्शन पर प्रदर्शनी लगाई गई व व्यख्याना समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पद्म श्री डॉ.लीला जोशी ने लोकमाता के कृतित्व पर प्रकाश डालतें हुए नारी सशक्तिकरण की बात कही।  मुख्यवक्ता के रूप में अधिवक्ता कुणाल भवर ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज के हिंदवी साम्राज्य की प्रशासनिक कल्पना को लोकमाता ने साकार किया। उन्होंने न केवल होल्कर साम्राज्य में बल्कि संपूर्ण भारत के जीर्ण-शीर्ण मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया, धर्मशालाएं बनवाई और नए मंदिरों का निर्माण करवाया। वे जानती थीं कि भारत की सांस्कृतिक पुनर्जागरण का केंद्र मंदिर हैं और इन्हीं के माध्यम से स्वत्व के भाव का निर्माण हो सकता है। उन्होंने सूचना तंत्र, व्यापार नीति और टैक्स नीति को सशक्त और प्रभावी बनाकर प्रशासन को मजबूत बनाया और अन्य रियासतों के साथ भी अपने संबंधों को सुदृढ़ और मजबूत किया। श्री शंकर का आदेश मानकर प्रशासनिक कार्यों को संपादित करने वाली लोकमाता ने राज्य की आंतरिक समस्याओं को योग्य व्यक्ति की सलाह मानकर सुलझाया और राजनीतिक षड्यंत्रों को अपनी प्रशासनिक योग्यता से असफल करते हुए राघोबा के आक्रमण को भी रोक लिया। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने की दिशा में महिला सेना का निर्माण किया और सती प्रथा, दहेज प्रथा जैसी कुप्रथाओं को समाप्त किया। समारोह के अध्यक्ष अनिल झालानी ने मालवा की रानी अहिल्या बाई को नमन करते हुए कहा की हम जिस धरा में जन्में है वो लोकमाता अहिल्या के आभा से कभी प्रजवलित हुई है।
व्याख्यानमाला के अंत में संचालनकर्ता निसर्ग दुबे द्वारा श्रोताओं को स्वछता, आत्मनिर्भरता स्वदेशी व नागरिक शिष्टाचार का संकलप दिलवाया गया। आभार सृजन महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ जिंदल यादव ने माना।