80 के दशक में बना आलोट नगर परिषद का भवन अब जर्जर हो चुका, हादसे का डर बढ़ा, जर्जर भवनों पर लोगो को ज्ञान और नोटिस बांटने वाली नगर परिषद अपने भवन पर नही ले रही संज्ञान

आलोट। जर्जर भवनों को लेकर नगरवासियों को ज्ञान और नोटिस बांटने वाली नगर परिषद खुद अपना जर्जर भवन नही देख रही। करीब चार दशक पहले बना नगर परिषद भवन जगह-जगह से क्षतिग्रस्त हो रहा है और हादसे की आशंका बढ़ा रहा है। फिर भी जिम्मेदार अधिकारी और जनप्रतिनिधि इस मामले पर गंभीर नही। आलम यह है कि यहा आने वाले लोग और काम करने वाले कर्मचारी बारिश के इस मौसम में परिषद के इस जर्जर भवन को खतरनाक मानने लगे है।
गौरतलब है कि यह भवन 80 के दशक में बना था, जिसका शिलान्यास 12 मई 1976 को विधायिका श्रीमती लीला देवी चौधरी की अध्यक्षता में तत्कालीन स्वायत्त शासन राज्य मंत्री नारायण प्रसाद शुक्ला के कर-कमलों द्वारा किया गया था। उस समय मुख्य नगर पालिका अधिकारी एस.एल. जैन, वरिष्ठ अध्यक्ष शांतिलाल राका और अध्यक्ष अब्दुल गफूर खां की उपस्थिति रही थी। लाखों की लागत से बना यह भवन अब बदहाली का शिकार है।
भवन की छतें जगह-जगह से टूट चुकी हैं, दीवारें दरक रही हैं, और छत के प्लास्टर के गिरने से जंग लगे सरिए तक बाहर निकल चुके हैं। यह न केवल प्रशासन की अनदेखी को दर्शाता है, बल्कि हर आने-जाने वाले की जान को भी खतरे में डालता है।
इस भवन में राजस्व, निर्माण, लेखा, स्टोर, आवक-जावक, प्रधानमंत्री आवास योजना, अध्यक्ष और उपाध्यक्ष कक्ष सहित पूरी नगर परिषद का संचालन होता है। कर्मचारियों सहित आम नागरिकों का लगातार आना-जाना होता है। बीते वर्षों में छत का प्लास्टर गिरने से एक कर्मचारी गंभीर रूप से घायल हो चुका है, जिसके सिर पर टांके तक आए थे।
ऐसा नहीं है कि ये खतरे प्रशासन की नजर में नहीं आए। पूर्व में भी कार्य समय के दौरान छत का प्लास्टर गिरने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं, लेकिन आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या जिम्मेदार अधिकारी किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहे हैं? जिस भवन में सैकड़ों लोगों की उपस्थिति रोजाना रहती है, उसकी अनदेखी करना सीधे तौर पर प्रशासनिक लापरवाही की श्रेणी में आता है। जरूरत है तत्काल मरम्मत या पुनर्निर्माण की, ताकि नगर के प्रशासनिक तंत्र की सुरक्षा और विश्वसनीयता बनी रह सके। जनहित में प्रशासन को शीघ्र संज्ञान लेकर ठोस कदम उठाना चाहिए।