चमड़ी हमारी जाए,पर दमड़ी उनकी ना जाये " (व्यंग्य कविता)

चमड़ी हमारी जाए,पर दमड़ी उनकी ना जाये "  (व्यंग्य कविता)

रतलाम। अपनी कविताओं ओर रचनाओं के लिए प्रसिद्ध लेखिका इंदु सिंहा ने वर्तमान माहोल को देखते हुए एक लेख लिखा है , जिसमें उन्होंने बताया हैं कि चमड़ी जाए पर दमड़ी ना जाए। इनकी इन्हीं पंक्तियो से समझिए वर्तमान दौर की कहानी

मुहावरे और कहावतें होते  बड़े प्यारे मेरे दोस्त ,
इसमें जीवन के अर्थ छिपे ढेर सारे
 अब एक मुहावरे को लीजिये,
 थोड़ा सा उस पर चिंतन कीजिए
 चमड़ी जाए पर दमड़ी ना जाए,
अभी वर्तमान में जो माहौल है साहब,
 चमड़ी हमारी चली जाए ,
पर दमड़ी उनकी ना जाए,
 गरीब की चमड़ी की क्या औकात,
   खींचिए चमड़ी बहने दीजिए खून,
 होने दीजिए घाव ,
बढ़ाते रहिए महंगाई,भरिये तिजोरी,
वो भूख से मरता रहे हर रोज,
 पर आपकी आंखों से आंसू एक ना जाये,
 चिल्लाते रहते हैं गरीब ,मरते रहते हैं यूँ ही ,
उनकी जान बड़ी सस्ती है,
  चमड़ी है उनकी बड़ी कीमती
 आप उसे जीने नहीं दोगे ,
चमड़ी उसकी उधेड़ते रहोगे,
 क्योंकि नियम कानून आपका,
आप है दमड़ियो के मालिक,
 तड़पती जिंदगी की तस्वीर लेकर,
सजाइये  अपने घर को 
फिर  दिखाइए ,
डार्लिंग ये है इंडिया,
ये है इण्डिया !
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इन्दु सिन्हा"इन्दु"
रतलाम (मध्यप्रदेश)
रचना मौलिक ओर स्वरचित है