प्रभु के शरण, गुरू के चरण और धर्म का स्मरण कभी नहीं छोडना चाहिए

प्रभु के शरण, गुरू के चरण और धर्म का स्मरण कभी नहीं छोडना चाहिए

- स्वतंत्रता दिवस पर आचार्य श्री ने मोहन टॉकीज में किया ध्वज वंदन, राष्ट्रगान भी हुआ
रतलाम। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर सैलाना वालों की हवेली मोहन टॉकीज में आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में ध्वज वंदन कर राष्ट्रगान गाया गया। इस मौके पर बडी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे।
 आचार्य श्री ने कहा कि परमात्मा के चरण में ही शरण है और किसी में नहीं। सागर में यदि लकडी और हीरे का डिब्बा तेर रहा है, तो डूबने वाला लकडी को पकड़ेगा ताकि वह बच सके, हीरे के डिब्बे को नहीं। ठीक वैसे ही हमें संसार के सागर में डूबने से बचना है तो प्रभु चाहिए। यदि हम किसी सेलिब्रिटी के साथ एक फोटो खींच लेते है, तो उसकी डीपी बना कर लगाते है, उसे बार-बार याद करते है लेकिन प्रभु का याद नहीं करते।
 आचार्य श्री ने कहा कि हमें प्रभु की शरण, गुरू के चरण और धर्म का स्मरण कभी नहीं छोडना चाहिए। हमें जीवन में अपनी इच्छा का अंत कर प्रभु की इच्छा को आरंभ करना है। हमें अपनी आत्मा की बात बताने की ताकत सिर्फ गुरू में होती है। यदि भगवान रूठे तो बचाने के लिए गुरू की शरण होती है लेकिन गुरू रूठे तो बचाने वाला कोई भी नहीं है। हमें सदैव धर्म का स्मरण करना चाहिए। इसे कभी छोडना नहीं है।
श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढी के तत्वावधान में चल रहे प्रवचन के दौरान बडी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे।