आचार्यश्री की प्रेरणा से पारिवारिक संपत्ति विवाद कोर्ट में नहीं ले जाएंगे

-मुनिश्री के आव्हान पर लिया संकल्प, प्रवचन-त्याग में शांति बसती है, राग अशांत करता है
रतलाम। परम पूज्य प्रज्ञा निधि युगपुरूष आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने छोटू भाई की बगीची में दो भाईयों का प्रसंग सुनाते हुए शनिवार को जब कहा कि त्याग में शांति है और राग अशांत करता है, तो तरूण तपस्वी श्री युगप्रभजी मसा ने पारिवारिक संपत्ति के विवाद कोर्ट में नहीं ले जाने का आव्हान कर दिया। इस आव्हान पर कई श्रावक-श्राविकाओं ने आचार्यश्री से संकल्प ले लिया।
आचार्यश्री ने बताया कि जो आनंद और जो शांति त्याग में है, वह राग में नहीं है। दो भाईयों के विवाद में एक भाई को संत के प्रवचन में जब ये बात समझ में आई, तो उनका सालों का विवाद एक पल में खत्म हो गया। इसके बाद दोनों में त्याग की होड लग गई। उन्होंने कहा कि संत बडी कोर्ट होते है, जो काम सुप्रीम कोर्ट नहीं कर सकती, वह संतों की वाणी कर सकती है। राग कई विवादों का कारण बनता है और त्याग समाधान है। इसलिए जड के प्रति राग और जीव के प्रति द्वेष का भाव कभी नहीं रखना चाहिए।
आचार्यश्री ने कहा कि दुर्मति परदोषों का दर्शन कराती है। परदोष दर्शन से पर निंदा, आत्म प्रशंसा, आग्रह वृत्ति और आक्षेप की भाषा निर्मित होती है। इससे सदैव बचने का प्रयत्न करो। उन्होंने कहा कि गुरू मार्ग दिखाते है, लेकिन उस पर चलना तो हमको ही पडता है। गुरू द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने से मंजिल जरूर प्राप्त होती है। इस मौके पर आचार्यश्री से कई तपस्वियों ने त्याग एवं तपस्या के प्रत्याख्यान भी लिए।
आचार्यश्री से पूर्व उपाध्याय, प्रज्ञारत्न श्री जितेशमुनिजी मसा ने चातुर्मास को आत्म दर्शन करने का पर्व बताया। उन्होंने अधिक से अधिक तप, त्याग और तपस्या करने का आव्हान किया। विद्वान सेवारत्न श्री रत्नेश मुनिजी मसा ने भी संबोधित किया। संचालन हर्षित कांठेड द्वारा किया गया।