नवकार भवन में दुर्मति के तीसरे दोष संदेहशीलता पर प्रवचन-
-आउट नहीं होना हो, तो डाउट में मत रहो-आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा
रतलाम। मिलकर बैठना और बांटकर खाना यही मानव धर्म है। जीवन में यदि आउट नहीं होना है, तो डाउट में कभी मत रहो। डाउट कभी हो, तो उसका तत्काल समाधान कर लो। सबकों अपना मानकर मानव धर्म का पालन करते रहे, तो कल्याण हो जाएगा।
यह बात परम पूज्य प्रज्ञा निधि युगपुरूष आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन में प्रवचन के दौरान उन्होने कहा कि सन्मति के बिना सदगति नहीं मिलती। इसलिए दुर्मति से बचना आवश्यक है। दुर्मति से बचने के लिए उसके दोषों का ज्ञान होना जरूरी है। दुर्मति का पहला दोष दुश्मनी का भाव, दूसरा परदोष दर्शन और तीसरा दोष संदेहशीलता है।
आचार्यश्री ने कहा कि संदेहशीलता का दोष सबमें होता है, इससे साधु-संत भी अछूते नहीं है। इस दोष के कारण छिपने-छिपाने का भाव निर्मित होता है। संदेहशील व्यक्ति मिलकर और बांटकर खाने में विश्वास नहीं रखता। उसे अकेले रहना पसंद आता है और वह किसी को अपनी विकृति भी बताना नहीं चाहता है। संदेहशीलता जीवन का बडा दोष है। इसमें माया की प्रधानता होती है और इससे घिरा व्यक्ति स्वस्थ भी नहीं रह पाता है।
आचार्यश्री ने कहा कि समाधान में समाधि, शांति और सफलता है, इसलिए संदेह हो, तो उसका तत्काल समाधान कर लेना चाहिए। समाधान के अभाव में सम्यक ज्ञान, दर्शन और चारित्र सभी प्रभावित होते है। संदेह से बचेंगे, तो खुशी, शांति, शक्ति और संतुष्टि सभी मिलेंगे। आचार्यश्री से पूर्व उपाध्याय, प्रज्ञारत्न श्री जितेशमुनिजी मसा ने माया के दुष्प्रभावों पर प्रकाश डालते हुए उससे बचने का आव्हान किया। विद्वान सेवारत्न श्री रत्नेश मुनिजी मसा ने भी संबोधित किया। संचालन हर्षित कांठेड द्वारा किया गया।