महिला सशक्तिकरण का बेमिसाल उदाहरण "माता सीता"इंदु सिन्हा लेखिका

महिला सशक्तिकरण का बेमिसाल उदाहरण "माता सीता"इंदु सिन्हा लेखिका

रतलाम। महिला दिवस के अवसर पर प्रसिद्ध लेखिका इंदु सिन्हा ने शब्दो से नारी सम्मान को लेकर एक विशेष उदाहरण दिया। महिला दिवस पर ज्यादातर प्रसिद्द महिलाओं की प्रसिद्धि के गुणगान किये जाते है वो सही भी है|लेकिन महिला सशक्तिकरण का सर्वोत्तम उदाहरण धीरज,धैर्य,स्नेह,दया,ममता और साहस की प्रतिमूर्ति  सिर्फ माता सीता ही हो सकती है|

एक कड़वा सच जो ज्यादातर समाज मे देखने मे आता है ,वो है छोटे छोटे ईगो,धन दौलत के लिए घरों को बर्बाद करना,पुलिस कोर्ट  में घसीटते रहना|कई जगह माँ द्वारा खुद के बच्चों की हत्याओं जैसी क्रूर घटनाएं भी देखने को मिलती है तो मन कांप जाता है कितनी पत्थर दिल होगी माँ|

-सीता जी इसलिये आदर्श है|
माता सीता ने अपने कर्तव्यों का पालन पूरे समर्पण के साथ किया वो भी बिना किसी शिकायत के| कई जगह ये भी देखने को मिलता है पत्नियां शीघ्र सफलता  प्राप्त करने के लिये अनैतिक रास्तों को अपना लेती है|माता सीता ने धैर्य पूर्वक दोनो बच्चो को ऋषि के आश्रम में बड़ा किया|उनको शिक्षित किया,युध्द कौशल में पारंगत बनाया|उनको अच्छे संस्कार दिए|उनको हर प्रकार से योग्य बनाया|संघर्ष किया| जीवन की कठिनाइयों से डटकर सामना किया|आत्मविश्वास,बहादुरी, साहस का बेमिसाल उदाहरण है माता सीता|
दुसरो को छोटा मानकर कोई बड़ा नही हो जाता है,आनंद तो तब है जब सबको साथ लेकर चले |
आज जरूरत है समाज मे माता सीता के आदर्शों और विचारों को अपनाया जाए|जिससे कि विपरीत हालात में भी महिलाएं कमजोर ना बने|

-श्रीमती इन्दु सिन्हा"इन्दु", रतलाम (मध्यप्रदेश)

" सुन रही हो माँ "(कविता) देखो माँ ,
हर वर्ष महिला दिवस पर तुम्हारा गुणगान किया जाता है,
उस एक दिन में, भर दिए जाते है पन्ने,
तुम्हारी महानता के, माँ महान है, माँ बगैर हम कुछ नही,
कही झूठ कही सच, कही भ्रम का लिबास पहनाकर,
तुम्हारी महिमा बतायी जाती है, ऐसा लगता है,
काँच के शोकेस को चमकाकर, कोई मूर्ति रख दी हो,
देवी कहकर तुमको तुमको, प्यार के रैपर से कवर किया जाता है,
लेकिन कोई नही लिखता, कोई नही गाता,
महानता के पीछे छिपे, पूरे घर मे तुम्हारी भागदौड़ को,
दिन भर खटती रहती, तुम्हारी जिम्मेदारी को,
आधी रात तक बर्तन घिसती, तुम्हारी उँगलियों को,
तुम्हारे टूटे सपनो को, छिप छिप कर बहाए आँसुओं पर,
होठों की नकली मुस्कान को, पल पल मरती इच्छाओं पर,
तुम्हारे खोए व्यक्तित्व पर, घर घर ऐसी ही होती है माँ,
तुम सुन रही हो ना माँ ?