अनैतिकता का फल सात पीडियों को भुगतना पडेगा-आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा

अनैतिकता का फल सात पीडियों को भुगतना पडेगा-आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा


-छोटूभाई की बगीची में प्रवचन. रिश्वतखोरों पर किया कटाक्ष
रतलाम। परम पूज्य प्रज्ञा निधि युगपुरूष आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने रविवार के विशेष प्रवचन में रिश्वतखोरों पर कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि नैतिकता हमारा सौभाग्य और अनैतिकता दुर्भाग्य है। नैतिकता से कुछ प्राप्त किया, तो उसका लाभ सात पीढियों को मिलेगा। लेकिन अनैतिकता से कुछ पाते है, तो उसका फल कष्ट के रूप में सात पीढियों को भुगतती है।
आचार्यश्री ने कहा कि संसार में लोग दो बातों से लाचार होते है-एक लालच और दूसरा झूठ। लालच और झूठ एक-दूसरे के पूरक है और यही व्यक्ति को अनैतिक बनाते है। यदि लालच छोड दिया जाए, तो किसी को लाचार नहीं होना पडेगा। आज युवा पीढी जल्दी पैसा कमाना चाहती है और इसके लिए अनैतिक बन रही है। हम अखबारों में पडते है कि बडे-बडे अफसर भी लालच में आते है और रिश्वत लेेते पकडा जाते है। इससे उनकी नौकरी जाती है, इज्जत नहीं रहती और जेल भी जाना पडता है। इसके बाद पूरा जीवन पश्चाताप में गुजरता है। विडंबना है कि आज कोई काम बिना लालच और रिश्वत के नहीं हो रहे और लोग यह भी नहीं सोच रहे कि छोटी सी रिश्वतखोरी कितनी बडी सजा दिलाती है।
आचार्यश्री ने कहा कि नैतिकता से कमाई कर जो आजीविका चलाते है, उन्हें सुख, समृद्धि, इज्जत और शांति सब मिलते है। जैसे स्नान से तन को शुद्धि मिलती है, दान से धन को और सहनशीलता से मन को शुद्धि मिलती है, वैसे ही नैतिकता से पूरा जीवन शुद्ध रहता है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को सत्य की पूजा करना चाहिए। सत्य की मानसिकता नैतिक बनाती है। हमेशा नीति से कमाओ, रीति से खर्च करो और प्रीति से दान करो। नीति, रीति और प्रीती जिसके जीवन में रहेगी, वह संसार में भी सुखी रहेगा और बाद में भी सदा सुखी ही रहेगा।
आरंभ में उपाध्याय, प्रज्ञारत्न श्री जितेश मुनिजी मसा ने आचरण सूत्र का वाचन करते हुए पानी की हिंसा से बचने का आव्हान किया। विद्वान सेवारत्न श्री रत्नेश मुनिजी मसा ने भी संबोधित किया। आदर्श संयमरत्न श्री विशालप्रिय मुनिजी मसा ने प्रवचनों पर आधारित रोचक प्रश्न किए। संचालन हर्षित कांठेड द्वारा किया गया।

युगप्रभजी मसा ने की मासक्षमण का दीर्घ तपस्या

परम पूज्य प्रज्ञा निधि युगपुरूष आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा की प्रेरणा से रतलाम के अभ्युदय चातुर्मास में तपस्या ठाठ लग रहा है। रविवार को तरूण तपस्वी श्री युगप्रभजी मसा ने 31 उपवास की दीर्घ तपस्या पूर्ण की। सेवानिष्ठ, एकान्तर तप के तपस्वी श्री जयमंगल मुनिजी मसा ने 25 उपवास और विद्यावाग्नी महासती श्री गुप्तिजी मसा ने 22 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। तपस्विनी, सेवागुण संपन्न महासती श्री निरूपणाश्री मसा की भी 13 उपवास की तपस्या चल रही है। इसके अलावा श्रावक-श्राविकाएं भी तप आराधना में जुटे है। बेले और तेले की लडी में लगातार तप जारी है।